Wednesday, July 28, 2010

मेरी बिटिया!
आयी मेरी जीवन में बनकर खुशियाँ,
मासूम, कोमल, मेरी बिटिया!
नन्ही जान थी वो मेरी
भोली-भाली कितनी प्यारी!
महक उठा मेरा जीवन
झूम उठा सारा आँगन.
फिर न जाने कैसे बीते दिन,
जल्द आया फिर वो दिन,
जब बिटिया मेरी  हुयी सयानी;
गया बचपन, आई जवानी.
जो  बच्मन में थी बहुत शरार्थी,
अब एक नाज़ुक कोमल कलि थी.
गुड्डा-गुड्डी भूल गयी,
कलि जैसे खिल गयी.
मन में बसाये आशा सपने,
खोयी रहती वो अपने ही में.
फिर आया वो  दिन बड़ा,
जब सज्ज गया सुहाग का जोड़ा.
गहने सजाके, मेहँदी रचाके,
सुहागन बनी वोह ब्याह रचाके.
बिटिया रानी हुयी परायी,
इस घर से हुयी उसकी बिदाई.
आँगन से उठी उसकी डोली,
छोड़ चली वो मुझे अकेली.
दिया मेरे आँगन की,
पिया के संग चली गयी.
अमानत थी वो जिसकी ,
उसीकी वो हो गयी.
मेरे आँचल का धन
गयी कोई और आँगन.
थामे मेरे आँचल को जिसने,
अपने पहले कदम बडाये थे,
थामे अपने पिया का हाथ
निभाने चली वो जीवन का साथ.
मन था खुश फिर भी दुखी
हम ने चाहा की वो रहे सुखी.
कभी ना भीगे उसकी अखियाँ
उसकी हो जाए सारी खुशियाँ.




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